Mountain Ranges of Himachal Pradesh

हिमाचल प्रदेश की पर्वत श्रृंखलाएँ/Mountain Ranges of Himachal Pradesh in Hindi

प्राकृतिक खजाने का अनावरण: हिमाचल प्रदेश की खुबसूरत पर्वत श्रृंखलाएँ

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प्रश्न: हिमाचल प्रदेश में क्षेत्र पर उनके पारिस्थितिक, सांस्कृतिक और आर्थिक प्रभाव के संदर्भ में पर्वत श्रृंखलाओं के महत्व पर चर्चा करें। विशिष्ट पर्वत श्रृंखलाओं और राज्य की जैव विविधता, पर्यटन और जल संसाधनों में उनके योगदान के उदाहरण प्रदान करें।

Introduction: 

Mountain Ranges of Himachal Pradesh in Hindi आर्टिकल में/ हिमाचल प्रदेश की पर्वत श्रृंखलाएँ के बारे में बात करेंगे।

हिमाचल प्रदेश, भारत के उत्तरी भाग में बसा राज्य, अपने मनोरम परिदृश्य और पर्वत श्रृंखलाओं के लिए प्रसिद्ध है। हिमाचल प्रदेश की ऊंची चोटियाँ, घाटियाँ इसे प्रकृति प्रेमियों, साहसिक उत्साही लोगों और लुभावनी सुंदरता के बीच शांति की तलाश करने वालों के लिए एक लोकप्रिय स्थान बनाती हैं।

हिमाचल प्रदेश में प्रसिद्ध पर्वत श्रृंखलाओं” की इस खोज में, हम इस आश्चर्यजनक क्षेत्र की शोभा बढ़ाने वाले विविध पर्वत श्रृंखलाओं के बारे में बात करेंगे। इन पर्वत श्रृंखलाओं के महत्व और विशेषताओं को समझकर, हम हिमाचल प्रदेश के प्राकृतिक रहस्यो को जान सकते है। धौलाधार रेंज की ऊंची ऊंचाइयों से लेकर किन्नौर कैलाश रेंज की आध्यात्मिक आभा तक।

Famous Mountain Ranges of Himachal Pradesh / हिमाचल प्रदेश की प्रसिद्ध पर्वत श्रृंखलाएँ

समुद्र तल से हिमाचल प्रदेश की ऊंचाई 350 मीटर से 7000 मीटर के बीच में पाई जाती है। हिमाचल प्रदेश में आकर्षित करने वाली अनेक पर्वत श्रृंखलाएँ, चोटियाँ व घाटियाँ हैं। हिमालय प्रदेश को 3 प्रकार की पर्वत श्रेणियों/ पर्वत श्रृंखलाएँ में विभाजित किया गया है।

निम्न हिमालय खंड (LOWER HIMALAYA REGION) :

इसे शिवालिक या बाहरी हिमालय खंड भी कहा जाता है। शिवालिक का अर्थ है- शिव की अलका यानि शिव की जटायें (Tresses of Shiva) । इसका पुराना नाम ‘मैनाक पर्वत’ या मानक पर्वत था। इस क्षेत्र के छोटे छोटे नालों को स्थानीय भाषा में “चो” या “खढ्ढे” कहा जाता है। 

  • इस श्रृंखला के क्षेत्र:- सिरमौर, बिलासपुर, हमीरपुर, मंडी , नाहन, चम्बा कांगड़ा जिला के निचले भाग व ऊना ।
  • समुद्रतल से मुख्य ऊंचाई:- 350 मीटर से 1500 मीटर।
  • औसतन वार्षिक वर्षा:- 1500 मिलीमीटर से 1800 मिलीमीटर।
  • मिट्टी:- सरकरी तथा शीघ्र टूटने वाले कणों से बनी है।
  • जनसंख्या:- घनी जनसंख्या वाले क्षेत्र।
  • मुख्य व्यवसाय:- इस क्षेत्र में रहने वाले लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि है।
  • फ़सले:- मक्का, गेहूं अदरक, गन्ना, धान, आलू तथा खट्टे फलों की पैदावार होती है। मुख्य फल आम और नींबू प्रजाति के फल हैं।
भीतरी या मध्य हिमालय (INNER HIMALAYAS OR MID MOUNTAINS) :

इस क्षेत्र की प्रमुख श्रृंखलाएँ हैं-धौलाधार एवम् पीरपंजाल।

धौलाधार : इसे ‘ मौलाक पर्वत ‘ के नाम से भी जाना जाता है । यह मुख्यता काँगड़ा ज़िले में पाई  जाती है। इसका कुछ हिस्सा मंडी व चम्बा में भी पड़ता है। यह खेड़ी नामक स्थान से हिमाचल में प्रवेश करती है।  सतलुज नदी इसे रामपुर के पास, ब्यास नदी इसे लारजी नामक स्थल पर तथा रावी नदी इसे चम्बा में  काटती है। पीरपंजाल से इसका उत्तरी हिस्सा बड़ा भंगाल के पास टकराता है।  इसे “श्वेत श्रंखला” या श्वेत मुकुट भी कहते है, बर्फ से ढके रहने के कारण। इसकी समुद्रतल से ऊँचाई मुख्यत: 3050 मीटर  से 4570 मीटर तक जाती है।

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Dhauladhar Range of Himachal Pradesh

  • स्थान: (Location) धौलाधार श्रेणी हिमाचल प्रदेश के दक्षिणी क्षेत्र में स्थित है, जो कांगड़ा घाटी को चंबा घाटी से अलग करती है। यह पूर्व से पश्चिम तक लगभग 120 किलोमीटर तक फैली हुई है।
  • भौगोलिक विशेषताएं: (Geographical features) इस श्रृंखला में प्रभावशाली चोटियाँ हैं, जिनमें सबसे ऊँची चोटी हनुमान टिब्बा (Hanuman Tibba) है, जो 5,982 मीटर (19,625 फीट) की ऊँचाई पर है। धौलाधार रेंज की औसत ऊंचाई 4,000 से 5,000 मीटर (13,000 से 16,000 फीट) तक है। इस श्रेणी की विशेषता ऊबड़-खाबड़ (rugged terrain) भूभाग, खड़ी ढलानें, गहरी घाटियाँ और चट्टानें हैं।
  • हिमनदी उत्पत्ति: (Glacial Origin) धौलाधार श्रेणी अपने ग्लेशियरों के लिए जानी जाती है, जो क्षेत्र की कई नदियों के लिए पानी का एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं। ये ग्लेशियर ब्यास नदी, रावी नदी और चिनाब नदी को पानी देते हैं, जो हिमाचल प्रदेश के जल संसाधनों और जलविद्युत उत्पादन में योगदान करते हैं।
  • लुभावने दृश्य: (Breathtaking Views) धौलाधार रेंज लुभावनी प्राकृतिक सुंदरता प्रदान करती है, जिसमें बर्फ से ढकी चोटियाँ, अल्पाइन घास  (alpine meadows) के मैदान, घने जंगल और सुरम्य घाटियाँ शामिल हैं। यह रेंज एक विस्मयकारी परिदृश्य प्रस्तुत करती है जो दुनिया भर से पर्यटकों, ट्रैकर्स और प्रकृति प्रेमियों को आकर्षित करती है।
  • ट्रैकिंग और पर्वतारोहण: (Trekking and Mountaineering) धौलाधार रेंज ट्रैकिंग और पर्वतारोहण के शौकीनों के लिए उत्कृष्ट अवसर प्रदान करती है। त्रिउंड ट्रेक (Triund Trek) और इंद्रहार पास (Indrahar Pass) ट्रेक जैसे लोकप्रिय ट्रैकिंग मार्ग इस श्रृंखला से होकर गुजरते हैं, जो लुभावने दृश्य और रोमांचकारी अनुभव प्रदान करते हैं।
  • जलवायु और वनस्पति: (Climate and Vegetation) धौलाधार रेंज में समशीतोष्ण जलवायु का अनुभव होता है। निचली ढलानें ओक, रोडोडेंड्रोन और देवदार के जंगलों से ढकी हुई हैं, जबकि उच्च ऊंचाई पर कठोर जलवायु के कारण अल्पाइन घास के मैदान और अल्प वनस्पति हैं।
  • सांस्कृतिक महत्व: (Cultural Significance) धौलाधार रेंज इस क्षेत्र में सांस्कृतिक महत्व रखती है। यह भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है और विभिन्न मिथकों और किंवदंतियों से जुड़ा हुआ है। यह क्षेत्र प्राचीन मंदिरों और मठों से युक्त है, जो तीर्थयात्रियों और आध्यात्मिक जिज्ञासुओं को आकर्षित करता है।
  • पर्यटन और आर्थिक महत्व: (Tourism and Economic Importance) धौलाधार रेंज की प्राकृतिक सुंदरता हिमाचल प्रदेश में पर्यटन उद्योग में योगदान देती है। यह बड़ी संख्या में पर्यटकों को आकर्षित करता है और आतिथ्य, साहसिक खेलों और प्रकृति-आधारित गतिविधियों के माध्यम से स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देता है।

Pir Panjal Range of Himachal Pradesh

  • पीर पंजाल :  यह मुख्यता चम्बा ज़िले में पड़ती है।  यह मध्य हिमालय की सबसे लम्बी श्रृंखला है। इसकी ऊंचाई मुख्यतः 3960 से 5470 मीटर तक  है। ‘चूड़धार‘ (3647 मीटर) जिसे चूड़चांदनी के नाम से भी जाना जाता है इसी श्रृंखला में स्थित है। यह कुल्लू क्षेत्र को स्पीति क्षेत्र से अलग करती है।
  • भौगोलिक महत्व: (Geographical Significance) पीर पंजाल रेंज हिमाचल प्रदेश की प्रमुख पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है। राज्य की स्थलाकृति की व्यापक समझ के लिए प्रमुख पर्वत श्रृंखलाओं सहित राज्य की भौगोलिक विशेषताओं का ज्ञान होना महत्वपूर्ण है।
  • प्रशासनिक सीमाएँ: *Administrative Boundaries:) पीर पंजाल रेंज हिमाचल प्रदेश और जम्मू और कश्मीर के बीच एक प्राकृतिक प्रशासनिक सीमा के रूप में कार्य करती है। हिमाचल प्रदेश संबद्ध सेवाओं जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं में बैठने वाले उम्मीदवारों के लिए प्रशासनिक सीमाओं के सीमांकन को समझना महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह शासन, अधिकार क्षेत्र और नीति कार्यान्वयन से संबंधित है।
  • सामरिक महत्व: (Strategic Importance) पीर पंजाल रेंज जम्मू और कश्मीर की सीमा से निकटता के कारण रणनीतिक महत्व रखती है। यह क्षेत्र के लिए रक्षा और सुरक्षा संबंधी विचारों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं में बैठने वाले उम्मीदवारों के लिए रणनीतिक स्थानों और उनके निहितार्थों का ज्ञान मूल्यवान है।
  • आर्थिक प्रभाव: (Economic Impact) पीर पंजाल रेंज विभिन्न माध्यमों से हिमाचल प्रदेश के आर्थिक विकास में योगदान देती है। यह अपने ग्लेशियरों और नदियों के माध्यम से जल संसाधन प्रदान करता है, जो क्षेत्र में सिंचाई, पनबिजली उत्पादन और कृषि का समर्थन करने के लिए महत्वपूर्ण हैं। प्रशासनिक भूमिकाओं में सेवा करने का लक्ष्य रखने वाले उम्मीदवारों के लिए प्राकृतिक संसाधनों के आर्थिक महत्व को समझना आवश्यक है।
  • बुनियादी ढाँचा विकास: (Infrastructure development) पीर पंजाल रेंज में सड़क नेटवर्क और सुरंगों जैसी महत्वपूर्ण बुनियादी ढाँचा विकास परियोजनाएँ देखी गई हैं, जिनका उद्देश्य कनेक्टिविटी बढ़ाना और क्षेत्रीय विकास को बढ़ावा देना है। उम्मीदवारों को इन बुनियादी ढांचा परियोजनाओं और क्षेत्र के सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए उनके निहितार्थों के बारे में पता होना चाहिए।
  • पर्यटन क्षमता: (Tourism potential)  पीर पंजाल रेंज द्वारा प्रस्तुत प्राकृतिक सुंदरता और मनोरम दृश्य दुनिया भर के पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। हिमाचल प्रदेश में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले उम्मीदवारों के लिए क्षेत्र की पर्यटन क्षमता और राज्य की अर्थव्यवस्था में इसके योगदान का ज्ञान महत्वपूर्ण है।

More Info Inner Himalayas or Mid Mountains

 
  • इस श्रृंखला के क्षेत्र:- इस खंड में चम्बा का ऊपरी भटियात क्षेत्र, चुराह व भरमौर, मण्डी के ऊहल, चच्योट और करसोग के क्षेत्र सिरमौर का गिरी-पार का क्षेत्र, कुल्लू-मनाली का क्षेत्र, कांगड़ा के बड़ा भंगाल का क्षेत्र और शिमला जिले के सारे क्षेत्र आते हैं।
  • समुद्रतल से मुख्य ऊंचाई:- 1500 मीटर से 4500 मी
  • औसतन वार्षिक वर्षा:- 75 सेंटीमीटर से 100 सेंटीमीटर
  • मिट्टी:- हल्की चिकनी, हल्की रेतीली तथा गहरे भूरे रंग की है
  • जनसंख्या :- जनसंख्या का घनत्व निम्न हिमालय क्षेत्र की तुलना में कम है और जैसे-जैसे हम पूर्व की ओर ऊपर की ओर बढ़ते जाते हैं, यह घनत्व कम होता जाता है
  • मुख्य व्यवसाय:- मुख्य व्यवसाय कृषि और बागवानी दोनों
  • फ़सले:-  मक्की, गन्दम, जौ, आलू (मुख्य फ़सल/ नगदी फ़सल) ।सेब, आड़ू, पलम, नाशपाती, बादाम के मुख्य बगीचे भी है।
ऊपरी हिमालय खंड (GREATER HIMALAYA REGION)

इस क्षेत्र को वृहत हिमालय तथा अल्पाइन क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है ।  इस क्षेत्र में मुख्यतः जास्कर पर्वत या ट्रांस हिमालय श्रृंखला आती है जो हिमाचल प्रदेश को तिब्बत से अलग करती है । हिमाचल प्रदेश की सबसे ऊँची चोटी शिला ( 7025 मीटर ) इसी पर्वत श्रृंखला में है।

  • इस श्रृंखला के क्षेत्र:- चम्बा का पांगी क्षेत्र, लाहौल-स्पीति और किन्नौर
  • समुद्रतल से मुख्य ऊंचाई:- 4500 मीटर तथा इससे अधिक पाई जाती है।
  • औसतन वार्षिक वर्षा:- वर्षा बहुत ही कम होती है।
  • मिट्टी:- शुष्क पहाड़ी मिट्टी। इस क्षेत्र का मौसम तथा मिट्टी सूखे फलों(मेवे) व फसलों के लिए उपयोगी है।
  • जनसंख्या:- जनसंख्या घनत्व बहुत कम है मुख्य आबादी समुद्रतल से 2400 मीटर से 3600 मीटर में बसती है।
  • फ़सले:- यह पर सूखे मेवे अत्यधिक मात्रा में होते है।  लाहौल की भूमि बीज के आलू पैदा करने के लिए उपयोगी है।

Some More Info About "Greater Himalaya"

  • अवलोकन: (Overview) ग्रेट हिमालयन रेंज  (The Great Himalayan Range) जिसे अक्सर “बर्फ का निवास” कहा जाता है, एक विशाल पर्वत श्रृंखला है जो भारत, नेपाल, भूटान, तिब्बत और पाकिस्तान सहित कई देशों में फैली हुई है। यह दुनिया की सबसे प्रमुख पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है और भारतीय उपमहाद्वीप के लिए बहुत महत्व रखती है।
  • भौगोलिक विशेषताएं: (Geographic features) ग्रेट हिमालय रेंज की विशेषता इसकी ऊंची चोटियां हैं, जिनमें से कुछ की ऊंचाई 8,000 मीटर (26,000 फीट) से अधिक है, जिसमें पृथ्वी की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट भी शामिल है। यह सीमा पश्चिम से पूर्व तक लगभग 2,400 किलोमीटर (1,500 मील) तक फैली हुई है, जिसमें कई ग्लेशियर, घाटियाँ और नदियाँ इसके ऊबड़-खाबड़ इलाके से होकर गुजरती हैं।
  • भारत के लिए महत्व: (Significance to India) भारत के संदर्भ में, ग्रेट हिमालयन रेंज देश के भूगोल, जलवायु और संस्कृति को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह एक प्राकृतिक अवरोधक के रूप में कार्य करता है, उत्तरी क्षेत्रों को चरम मौसम की स्थिति से बचाता है और एक विशिष्ट जलवायु ढाल प्रदान करता है।
  • जल संसाधन: (Water Resources) ग्रेट हिमालयन रेंज भारतीय उपमहाद्वीप के लिए मीठे पानी के एक प्रमुख स्रोत के रूप में कार्य करती है। यह श्रृंखला कई ग्लेशियरों का घर है जो गंगा, ब्रह्मपुत्र, सिंधु और उनकी सहायक नदियों जैसी महत्वपूर्ण नदियों को पानी देती हैं। ये नदियाँ कृषि, पनबिजली उत्पादन और पीने के उद्देश्यों के लिए पानी उपलब्ध कराती हैं, जिससे जीवन को बनाए रखने और विभिन्न आर्थिक गतिविधियों का समर्थन करने के लिए यह सीमा महत्वपूर्ण हो जाती है।
  • जैव विविधता: (Biodiversity) ग्रेट हिमालयन रेंज वनस्पतियों और जीवों की अविश्वसनीय विविधता का दावा करती है। इस क्षेत्र में अल्पाइन घास के मैदानों से लेकर घने जंगलों तक विभिन्न पारिस्थितिक तंत्र शामिल हैं, जो दुर्लभ और लुप्तप्राय सहित पौधों और जानवरों की प्रजातियों की एक विस्तृत श्रृंखला के लिए आवास प्रदान करते हैं। इसे दुनिया के जैव विविधता हॉटस्पॉट में से एक के रूप में मान्यता प्राप्त है।
  • सांस्कृतिक महत्व: (Cultural Significance) ग्रेट हिमालयन रेंज अत्यधिक सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व रखती है। यह विभिन्न धर्मों द्वारा एक पवित्र निवास के रूप में प्रतिष्ठित है, और इसकी चोटियों के बीच कई तीर्थ स्थल, मठ और मंदिर बसे हुए हैं। यह श्रृंखला उन स्वदेशी समुदायों का भी घर है जिन्होंने पहाड़ों से प्रभावित होकर अनूठी परंपराएं, रीति-रिवाज और कला रूप विकसित किए हैं।
  • साहसिक पर्यटन: (Adventure Tourism) ग्रेट हिमालयन रेंज दुनिया भर के साहसिक प्रेमियों को आकर्षित करती है। यह ट्रैकिंग, पर्वतारोहण, स्कीइंग, रिवर राफ्टिंग और अन्य रोमांचक गतिविधियों के अवसर प्रदान करता है। रेंज की चुनौतीपूर्ण चोटियाँ और सुंदर परिदृश्य इसे साहसिक पर्यटन के लिए एक पसंदीदा गंतव्य बनाते हैं।
  • जलवायु परिवर्तन का प्रभाव: (Impact of Climate Change) ग्रेट हिमालयन रेंज जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है। तेजी से हिमनदों का पीछे हटना, वर्षा के पैटर्न में बदलाव और प्राकृतिक आपदाओं का संभावित खतरा क्षेत्र के पारिस्थितिकी तंत्र, समुदायों और जल संसाधनों के लिए महत्वपूर्ण चुनौतियां पैदा करता है।

Zanskar Range / ज़ांस्कर रेंज

  • स्थान: (Location) ज़ांस्कर रेंज लद्दाख के दक्षिण-पश्चिमी भाग में स्थित है, जो ज़ांस्कर क्षेत्र तक फैली हुई है। यह विशाल हिमालय पर्वत प्रणाली का एक हिस्सा है और इसकी सीमा दक्षिण में महान हिमालय और उत्तर में लद्दाख रेंज से लगती है।
  • भौगोलिक विशेषताएं: (Geographical Features) ज़ांस्कर रेंज अपने ऊबड़-खाबड़ और भव्य इलाके के लिए जानी जाती है। इसमें ऊँची चोटियाँ, गहरी घाटियाँ और संकरी घाटियाँ हैं। इस श्रेणी में कई प्रमुख चोटियाँ हैं, जिनमें नून (7,135 मीटर/23,409 फीट) और कुन (7,077 मीटर/23,218 फीट) शामिल हैं, जो इस क्षेत्र के सबसे ऊंचे पहाड़ों में से हैं।
  • ग्लेशियर और जल संसाधन: (Glaciers and Water Resources) ज़ांस्कर रेंज कई ग्लेशियरों का घर है जो इस क्षेत्र को पानी उपलब्ध कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। शफ़ात, भानुंग और लैंगज़े जैसे ग्लेशियर ज़ांस्कर नदी की सहायक नदियों को पानी देते हैं, जो अंततः सिंधु नदी में विलीन हो जाती है। ये ग्लेशियर मीठे पानी की उपलब्धता के लिए महत्वपूर्ण हैं और क्षेत्र के पारिस्थितिक संतुलन में योगदान करते हैं।
  • जैव विविधता: (Biodiversity) ज़ांस्कर रेंज वनस्पतियों और जीवों की एक विविध श्रृंखला का समर्थन करती है। कठोर जलवायु परिस्थितियों के बावजूद, रेंज विभिन्न वनस्पतियों को प्रदर्शित करती है, जिनमें अल्पाइन घास के मैदान, विरल झाड़ियाँ और कठोर पौधों की प्रजातियाँ शामिल हैं। इस क्षेत्र में हिम तेंदुए, आइबेक्स, नीली भेड़ और विभिन्न पक्षी प्रजातियों जैसे वन्यजीव पाए जा सकते हैं, जो इसे जैव विविधता संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण बनाते हैं।
  • सांस्कृतिक विरासत: (Cultural Heritage) ज़ांस्कर रेंज ज़ांस्कर क्षेत्र की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के साथ गहराई से जुड़ी हुई है। यह क्षेत्र प्राचीन मठों और आश्रमों से युक्त है जो तिब्बती बौद्ध धर्म की आध्यात्मिक परंपराओं को दर्शाते हैं। फुगताल मठ और कार्षा मठ जैसे ये मठवासी प्रतिष्ठान अत्यधिक धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखते हैं, जो तीर्थयात्रियों और आगंतुकों को आकर्षित करते हैं।
  • सामाजिक-आर्थिक प्रभाव: (Socio-Economic Impact) ज़ांस्कर रेंज क्षेत्र के सामाजिक-आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। ग्लेशियरों और नदियों से जल संसाधनों की उपलब्धता कृषि और पशुधन पालन का समर्थन करती है, जो स्थानीय समुदायों के लिए प्राथमिक आजीविका स्रोत हैं। इस क्षेत्र में पर्यटन गतिविधियाँ भी देखी जाती हैं, जो होमस्टे, साहसिक पर्यटन और सांस्कृतिक अनुभवों के माध्यम से अर्थव्यवस्था में योगदान देती हैं।
    जलवायु परिवर्तन संबंधी चिंताएँ: (Climate Change Concerns) ज़ांस्कर रेंज, अन्य पर्वतीय क्षेत्रों की तरह, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति संवेदनशील है। ग्लेशियरों का तेजी से पिघलना, वर्षा के पैटर्न में बदलाव और चरम मौसम की घटनाओं में संभावित वृद्धि पारिस्थितिकी तंत्र, पानी की उपलब्धता और स्थानीय समुदायों की आजीविका के लिए चुनौतियां पैदा करती है।

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Kinnaur Kailash Range / किन्नौर कैलाश रेंज

किन्नौर कैलाश श्रेणी भारत के हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले में स्थित एक पर्वत श्रृंखला है। यहां किन्नौर कैलाश रेंज का संक्षिप्त विवरण दिया गया है:

  • स्थान: (Location) किन्नौर कैलाश पर्वत श्रृंखला हिमाचल प्रदेश के पूर्वी भाग में स्थित है, जो पूर्व में तिब्बत (चीन) की सीमा से लगती है। यह वृहत हिमालय का हिस्सा है और भारत और तिब्बत के बीच एक प्राकृतिक सीमा बनाता है।
  • पवित्र महत्व: (Sacred Significance) किन्नौर कैलाश रेंज अत्यधिक धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व रखती है। ऐसा माना जाता है कि यह भगवान शिव का निवास स्थान है, और इस पर्वतमाला की प्रमुख चोटी, जिसे किन्नौर कैलाश या किन्नर कैलाश (6,500 मीटर/21,325 फीट) के नाम से जाना जाता है, हिंदू और बौद्ध दोनों समुदायों द्वारा पवित्र मानी जाती है। वार्षिक किन्नर कैलाश शिवलिंगम ट्रेक उन भक्तों को आकर्षित करता है जो श्रद्धेय शिखर की चुनौतीपूर्ण तीर्थयात्रा करते हैं।
  • भूवैज्ञानिक संरचना: (Geological Formation) किन्नौर कैलाश रेंज तलछटी और रूपांतरित चट्टानों से बनी है, जो अद्वितीय भूवैज्ञानिक संरचनाओं को प्रदर्शित करती है। ऊबड़-खाबड़ इलाके में तीखी चट्टानें, गहरी घाटियाँ और बर्फ से ढकी चोटियाँ हैं, जो आश्चर्यजनक मनोरम दृश्य पेश करती हैं।
  • जैव विविधता: (Biodiversity) किन्नौर कैलाश रेंज विविध प्रकार की वनस्पतियों और जीवों का समर्थन करती है। निचली ढलानें समशीतोष्ण वनों से आच्छादित हैं जिनमें ओक, देवदार और रोडोडेंड्रोन पेड़ शामिल हैं, जबकि अल्पाइन घास के मैदान और उच्च ऊंचाई वाले घास के मैदान अधिक ऊंचाई पर पाए जा सकते हैं। यह रेंज विभिन्न वन्यजीव प्रजातियों का भी घर है, जिनमें हिमालयी काले भालू, कस्तूरी मृग और विभिन्न प्रकार की पक्षी प्रजातियाँ शामिल हैं।
    सांस्कृतिक विरासत: (Cultural Heritage) किन्नौर कैलाश रेंज सांस्कृतिक रूप से समृद्ध किन्नौर जिले में स्थित है, जो अपनी अनूठी परंपराओं, रीति-रिवाजों और स्थापत्य चमत्कारों के लिए जाना जाता है। इस क्षेत्र में किन्नौरियों सहित विविध जातीय समुदाय रहते हैं, जिन्होंने सदियों से अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित रखा है। यह श्रृंखला प्राचीन मंदिरों, मठों और पारंपरिक गांवों से भरी हुई है।

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